Wednesday 5 October 2016

"इप्टा" के राष्ट्रिय अधिवेशन पर हमले की हर तरफ निंदा

हमलावरों के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग ने ज़ोर पकड़ा 
इंदौर: 4 अक्टूबर 2016: (प्रदीप शर्मा और जन मीडिया मंच ब्यूरो):
साम्प्रदायिक शक्तिया फिर अपने आकाओं की सेवा में सक्रिय है।  जन मुद्दों की तरफ ध्यान लेजाने वाला या इन  आवाज़ उठाने वाला इनका दुश्मन है। इप्टा के राष्ट्रीय अधिवेशन पर किया गया हमला यही बताता है कि यह लोग अभी भी किसी सफदर हाश्मी की जान लेने की ताक में हैं।
गौरतलब है कि भारतीय जन नाट्य संगठन (इप्टा) के 14वें राष्ट्रीय सम्मेलन में मंगलवार को उस वक्त विवाद की स्थिति बन गई, जब भारत स्वाभिमान संगठन के कार्यकर्ता तिरंगा लेकर विरोध करने पहुंचे। कार्यकर्ता चलते समारोह में मंच पर चढ़ गए और माइक छीनकर नारेबाजी की। इनको ज़रा भी शर्म नहीं आई कि जिनके खिलाफ वे तिरंगे को एक साज़िशी हथियार की तर्ज इस्तेमाल कर रहे हैं उस उन लोगों ने केवल तिरंगे के लिए ही नहीं देश के सभी वर्गों की खुशहाली के लिए अपनी ज़िंदगियाँ लगाई हैं। ये लोग अपनी गुंडागर्दी से नहीं हटे तो जवाब में इप्टा के कार्यकर्ताओं ने विरोध करने आए इन हमलावरों को धक्के मारकर बाहर निकाला। एक हमलावर की पिटाई का भी दावा किया गया है। इस पिटाई के बाद हमलावर भाग खड़े हुए। पता चला है कि हमलावरों की संख्या 50-60 थी और ये लोग कलाकारों के वेश में वहां पहुंचे जिस कारण इन लोगों पर एकदम शक नहीं गया। इप्टा  हमले का समय करीब पौने चार बजे बताया है। 

मिली सूचना के मुताबिक दोपहर बाद भारत स्वाभिमान संगठन के कार्यकर्ता नारेबाजी करते हुए आनंद मोहन माथुर सभागृह पहुंचे। हॉल में बैठे दर्शकों को लगा कि यह नाटक का ही एक हिस्सा है, लेकिन कुछ ही देर बाद मंच पर पहुंचकर वे हंगामा करने लगे तो पता चला कि यह विरोध प्रदर्शन है। माइक छीनकर एक युवक ने सभी को भारत माता की जय बोलने को कहा। उसका कहना था आप लोग देशद्रोही कन्हैया के साथी हो। इधर, मंच के नीचे बैठे लोगों ने 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लगाना शुरू कर दिया। मंच पर बैठे कुछ वक्ताओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया तो इप्टा कार्यकर्ता भी भड़क गए। इस दौरान धक्का-मुक्की हुई। मंच से उतरते ही हिंदूवादी कार्यकर्ताओं ने कुर्सियों पर बैठे युवकों से मारपीट शुरू कर दी। इसके बाद दोनों पक्षों के बीच लात-घूसे चले। नाटक में नाटक करते हुए हमला सफल बनाने की साज़िश बुरी तरह से नाकाम हो गयी। पता नहीं चल सका कि अभी  ये लोग किस कलाकार को सफदर हाश्मी की तरह अपना निशाना बनाने आए थे। 
खबर आग की तरह सारे देश में फ़ैल गयी। लुधियाना "इप्टा" की तरफ से डॉक्टर अरुण मित्रा, डॉक्टर गुलज़ार पंधेर और एम  एस  भाटिया ने शाम को प्रेस बयान जारी करके इस की। कई  भी इसे गुंडागर्दी बताते हुए इसकी निंदा की।  परिसर से निकलने के बाद हमलावरों ने पथराव भी किया, जिसमें एक युवक घायल हो गया। इसी दौरान सड़क पर इप्टा का एक कार्यकर्ता दिखा तो उसकी पिटाई कर दी। घटना की सूचना मिलने के बाद मौके पर पुलिस पहुंची, तब तक मामला शांत हो चुका था। आयोजन खत्म होने तक सभागृह के बाहर पुलिस बल मौजूद रहा। रविवार को इप्टा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एमएस सथ्यु ने सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर टिप्पणी की थी। इससे हिंदूवादी संगठनों में नाराजगी है। शाम के पांच बजे के बाद कार्यक्रम दोबारा शुरू हो सका। कंवलजीत खन्ना, एडवोकेट एन  के जीत, निगम वर्करों के नेता विजय कुमार ने भी इस हमले की सख्त निंदा की है। कला के क्षेत्र में विरोध जताने का यह संघी स्टाईल अन्य जन संगठनों को भी आत्म रक्षा के लिए हथियार उठाने को मजबूर कर सकता है। अब देखना है कि हमलावरों के खिलाफ केस दर्ज  होता है। 

Sunday 13 March 2016

जारी है जनतक मुद्दों से ध्यान हटाने की साज़िश

किसी न किसी बहाने छुपाया जाता है जनता के असली गुनाहगारों को
...और अब ब्राहमलैंड?
बहुत पहले एक फिल्म आई थी धर्मा। फिल्म में प्राण होता है डाकू धर्म सिंह और डाका डालना है एक उस सेठ के घर से जिसने उसके साथ धोखा किया था। सेठ ने कर रखा है पुलिस का प्रबंध। डाकू रुकते हैं एक गैराज के सामने जो सेठ के घर के नज़दीक ही है और बहाना करते हैं जीप का कचरा साफ़ करवाने का। गैराज मालिक नवीन निश्चल फिल्म की कहानी में बना हुआ है डाकू धर्म सिंह का ही बेटा लेकिन दोनों बाप बेटा इस बात को नहीं जानते। वह डाकू धर्म सिंह से आ कर कचरा साफ़ करने के लिए मांगता है पांच हज़ार रूपये जिसके जवाब में धर्मा पूछता है कचरा साफ़ करने के पांच हज़ार रूपये? जवाब में वो कहता है कचरा साफ़ करने के नहीं पुलिस साफ़ करने के। सौदा हो जाता है।  नवीन निश्चल रिवाल्वर से फायर करता उसी जीप में इधर उधर हो जाता है और पुलिस उसे डाकू समझ कर उसके पीछे हो लेती है।  इसके बाद डाकू धर्म सिंह आसानी से अपने दुश्मन को अपना शिकार बना लेता है। ...और अब ब्राहमलैंड?
कुछ इसी तरह हो रहा है आजकल भी। बस डाकू और और आधुनिक डाकुओं के शिकार बदल गए हैं। एक समस्या खड़ी होती है तो दूसरी खड़ी कर दी जाती है और दूसरी जोर पकड़ती है  तो कोई तीसरा मामला खड़ा कर दिया जाता है।  इसे हाथ की सफाई कहो या जादूगरी कि बहुत ही सफाई से लोगों का ध्यान बार बार वास्तविक मुद्दों से हटा कर इधर उधर कर दिया जाता है। शायद कुछ दलों के नेताओं ने इस मकसद के लिए बाकायदा कुछ हॉल टाईमर भी रख छोड़े होंजो 24 घंटे सभी काम छोड़ कर उनका बचाव करने को तैयार रहते हैं। इस  तरह की फ़ोर्स आज के युग की ज़रूरत भी बन चुकी है। हवा पैदा करना और उसे अपने आका की मर्ज़ी के मुताबिक बहाना ही इस फ़ोर्स का काम होता है।  
नमूने के तौर बात करते हैं। सोशल मीडिया पर एक संदेश दिखा एक जानेमाने प्रकाशन ग्रुप में कि विकिलीक्स ने काले धन वालों की पहली सूची जारी की है जिसमें 24 नाम हैं। आरम्भिक जाँच में पता लगा कि कुछ दिन पहले इसी तरह की एक लिस्ट जारी हुई थी जिसमें कुछ कांग्रेसी नेताओं के नाम थे। इस लिए शायद बदला लेने के लिए किसी ने दूसरी लिस्ट जारी कर दी जिसमें भाजपा से सबंधित नेताओं के नाम थे। जब इस मामले को एक अन्य ग्रुप में रखा गया तो किसी मित्र ने झट से नई सूची जारी कर दी जिसमें वाम नेताओं के नाम थे क्यूंकि वाम सदस्य इस ग्रुप में उन्हें जवाब दे रहे थे।
अगर अंग्रेज़ों ने लोगों को हिन्दू- सिक्ख मुस्लिम और ईसाई  में बाँट दिया था तो आज के शातिर लोग जनता के इस बंटवारे को और आगे बढाते हुए लोगों को कांग्रेसी, अकाली या वामपंथी में बाँट रहे हैं। महंगाई, गरीबी, भूखमरी, हर रोज़ होती आत्म हत्याएं इन्हें मुद्दा नहीं लगती। हर गली मोहल्ले के मोड़ पर बिकता नशा इन्हें मुद्दा नहीं लगता। आये दिन होते रेप इनकी संवेदना नहीं जगाते। जनता पर होता लाठीचार्ज इन्हें महसूस नहीं होता।  सरेआम होती हत्याएं इनके  दिल को महसूस नहीं होतीं पर अगर किसी नेता से कोई पूछ ले कि आप ने तो चुनावों में यह वायदा किया था या वो वायदा किया था तो सारा ज़ोर उसे बचाने में लगा देते हैं।  किसी ने ठीक ही कहा है कि अपनी गलती पर हर कोई वकील बन जाता है और वो भी बहुत अच्छा लेकिन दुसरे की गलती पर वो सीधा जज बन जाता है। 
इस सारे जनून को शांत रख कर नव निर्माण में भागीदार होना कहीं अच्छा होता लेकिन बहस को उस तरफ ध्यान जाने ही नहीं दिया जाता। इस लिए एक निवेदन है किसी दिन खुले मंच पर बात हो।  सभी के सामने सभी अपने विचार रखें। जिसने भी बात करनी हो वो किसी का पीआरओ बन कर बात न करे।  बात आम जनता के दुःख की हो न कि किसी नेता के दल या छवि को पहुँचती कथित ठेस को लेकर। एक ही बात बार बार दोहराई न जाये। इस में दल और नेतागीरी से ऊपर उठ कर बहस करने वाले को सम्मानित किया जाये और राजनीति करने वाले को नज़र अंदाज़ किया जाये।  इसका लेख जोखा बहुत जल्द सभी के सामने होगा जिसका चयन बाकायदा एक कमेटी करे।