Sunday 13 March 2016

जारी है जनतक मुद्दों से ध्यान हटाने की साज़िश

किसी न किसी बहाने छुपाया जाता है जनता के असली गुनाहगारों को
...और अब ब्राहमलैंड?
बहुत पहले एक फिल्म आई थी धर्मा। फिल्म में प्राण होता है डाकू धर्म सिंह और डाका डालना है एक उस सेठ के घर से जिसने उसके साथ धोखा किया था। सेठ ने कर रखा है पुलिस का प्रबंध। डाकू रुकते हैं एक गैराज के सामने जो सेठ के घर के नज़दीक ही है और बहाना करते हैं जीप का कचरा साफ़ करवाने का। गैराज मालिक नवीन निश्चल फिल्म की कहानी में बना हुआ है डाकू धर्म सिंह का ही बेटा लेकिन दोनों बाप बेटा इस बात को नहीं जानते। वह डाकू धर्म सिंह से आ कर कचरा साफ़ करने के लिए मांगता है पांच हज़ार रूपये जिसके जवाब में धर्मा पूछता है कचरा साफ़ करने के पांच हज़ार रूपये? जवाब में वो कहता है कचरा साफ़ करने के नहीं पुलिस साफ़ करने के। सौदा हो जाता है।  नवीन निश्चल रिवाल्वर से फायर करता उसी जीप में इधर उधर हो जाता है और पुलिस उसे डाकू समझ कर उसके पीछे हो लेती है।  इसके बाद डाकू धर्म सिंह आसानी से अपने दुश्मन को अपना शिकार बना लेता है। ...और अब ब्राहमलैंड?
कुछ इसी तरह हो रहा है आजकल भी। बस डाकू और और आधुनिक डाकुओं के शिकार बदल गए हैं। एक समस्या खड़ी होती है तो दूसरी खड़ी कर दी जाती है और दूसरी जोर पकड़ती है  तो कोई तीसरा मामला खड़ा कर दिया जाता है।  इसे हाथ की सफाई कहो या जादूगरी कि बहुत ही सफाई से लोगों का ध्यान बार बार वास्तविक मुद्दों से हटा कर इधर उधर कर दिया जाता है। शायद कुछ दलों के नेताओं ने इस मकसद के लिए बाकायदा कुछ हॉल टाईमर भी रख छोड़े होंजो 24 घंटे सभी काम छोड़ कर उनका बचाव करने को तैयार रहते हैं। इस  तरह की फ़ोर्स आज के युग की ज़रूरत भी बन चुकी है। हवा पैदा करना और उसे अपने आका की मर्ज़ी के मुताबिक बहाना ही इस फ़ोर्स का काम होता है।  
नमूने के तौर बात करते हैं। सोशल मीडिया पर एक संदेश दिखा एक जानेमाने प्रकाशन ग्रुप में कि विकिलीक्स ने काले धन वालों की पहली सूची जारी की है जिसमें 24 नाम हैं। आरम्भिक जाँच में पता लगा कि कुछ दिन पहले इसी तरह की एक लिस्ट जारी हुई थी जिसमें कुछ कांग्रेसी नेताओं के नाम थे। इस लिए शायद बदला लेने के लिए किसी ने दूसरी लिस्ट जारी कर दी जिसमें भाजपा से सबंधित नेताओं के नाम थे। जब इस मामले को एक अन्य ग्रुप में रखा गया तो किसी मित्र ने झट से नई सूची जारी कर दी जिसमें वाम नेताओं के नाम थे क्यूंकि वाम सदस्य इस ग्रुप में उन्हें जवाब दे रहे थे।
अगर अंग्रेज़ों ने लोगों को हिन्दू- सिक्ख मुस्लिम और ईसाई  में बाँट दिया था तो आज के शातिर लोग जनता के इस बंटवारे को और आगे बढाते हुए लोगों को कांग्रेसी, अकाली या वामपंथी में बाँट रहे हैं। महंगाई, गरीबी, भूखमरी, हर रोज़ होती आत्म हत्याएं इन्हें मुद्दा नहीं लगती। हर गली मोहल्ले के मोड़ पर बिकता नशा इन्हें मुद्दा नहीं लगता। आये दिन होते रेप इनकी संवेदना नहीं जगाते। जनता पर होता लाठीचार्ज इन्हें महसूस नहीं होता।  सरेआम होती हत्याएं इनके  दिल को महसूस नहीं होतीं पर अगर किसी नेता से कोई पूछ ले कि आप ने तो चुनावों में यह वायदा किया था या वो वायदा किया था तो सारा ज़ोर उसे बचाने में लगा देते हैं।  किसी ने ठीक ही कहा है कि अपनी गलती पर हर कोई वकील बन जाता है और वो भी बहुत अच्छा लेकिन दुसरे की गलती पर वो सीधा जज बन जाता है। 
इस सारे जनून को शांत रख कर नव निर्माण में भागीदार होना कहीं अच्छा होता लेकिन बहस को उस तरफ ध्यान जाने ही नहीं दिया जाता। इस लिए एक निवेदन है किसी दिन खुले मंच पर बात हो।  सभी के सामने सभी अपने विचार रखें। जिसने भी बात करनी हो वो किसी का पीआरओ बन कर बात न करे।  बात आम जनता के दुःख की हो न कि किसी नेता के दल या छवि को पहुँचती कथित ठेस को लेकर। एक ही बात बार बार दोहराई न जाये। इस में दल और नेतागीरी से ऊपर उठ कर बहस करने वाले को सम्मानित किया जाये और राजनीति करने वाले को नज़र अंदाज़ किया जाये।  इसका लेख जोखा बहुत जल्द सभी के सामने होगा जिसका चयन बाकायदा एक कमेटी करे।