किसी न किसी बहाने छुपाया जाता है जनता के असली गुनाहगारों को
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...और अब ब्राहमलैंड? |
कुछ इसी तरह हो रहा है आजकल भी। बस डाकू और और आधुनिक डाकुओं के शिकार बदल गए हैं। एक समस्या खड़ी होती है तो दूसरी खड़ी कर दी जाती है और दूसरी जोर पकड़ती है तो कोई तीसरा मामला खड़ा कर दिया जाता है। इसे हाथ की सफाई कहो या जादूगरी कि बहुत ही सफाई से लोगों का ध्यान बार बार वास्तविक मुद्दों से हटा कर इधर उधर कर दिया जाता है। शायद कुछ दलों के नेताओं ने इस मकसद के लिए बाकायदा कुछ हॉल टाईमर भी रख छोड़े होंजो 24 घंटे सभी काम छोड़ कर उनका बचाव करने को तैयार रहते हैं। इस तरह की फ़ोर्स आज के युग की ज़रूरत भी बन चुकी है। हवा पैदा करना और उसे अपने आका की मर्ज़ी के मुताबिक बहाना ही इस फ़ोर्स का काम होता है।

अगर अंग्रेज़ों ने लोगों को हिन्दू- सिक्ख मुस्लिम और ईसाई में बाँट दिया था तो आज के शातिर लोग जनता के इस बंटवारे को और आगे बढाते हुए लोगों को कांग्रेसी, अकाली या वामपंथी में बाँट रहे हैं। महंगाई, गरीबी, भूखमरी, हर रोज़ होती आत्म हत्याएं इन्हें मुद्दा नहीं लगती। हर गली मोहल्ले के मोड़ पर बिकता नशा इन्हें मुद्दा नहीं लगता। आये दिन होते रेप इनकी संवेदना नहीं जगाते। जनता पर होता लाठीचार्ज इन्हें महसूस नहीं होता। सरेआम होती हत्याएं इनके दिल को महसूस नहीं होतीं पर अगर किसी नेता से कोई पूछ ले कि आप ने तो चुनावों में यह वायदा किया था या वो वायदा किया था तो सारा ज़ोर उसे बचाने में लगा देते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि अपनी गलती पर हर कोई वकील बन जाता है और वो भी बहुत अच्छा लेकिन दुसरे की गलती पर वो सीधा जज बन जाता है।
इस सारे जनून को शांत रख कर नव निर्माण में भागीदार होना कहीं अच्छा होता लेकिन बहस को उस तरफ ध्यान जाने ही नहीं दिया जाता। इस लिए एक निवेदन है किसी दिन खुले मंच पर बात हो। सभी के सामने सभी अपने विचार रखें। जिसने भी बात करनी हो वो किसी का पीआरओ बन कर बात न करे। बात आम जनता के दुःख की हो न कि किसी नेता के दल या छवि को पहुँचती कथित ठेस को लेकर। एक ही बात बार बार दोहराई न जाये। इस में दल और नेतागीरी से ऊपर उठ कर बहस करने वाले को सम्मानित किया जाये और राजनीति करने वाले को नज़र अंदाज़ किया जाये। इसका लेख जोखा बहुत जल्द सभी के सामने होगा जिसका चयन बाकायदा एक कमेटी करे।