Thursday 19 December 2019

जिसने अपनी सारी जवानी घुसपैठियों को निकालने में लगा दी

क्या कह रहे हैं वह--ज़रा ध्यान से सुनिए 
Himanshu Kumar के फेसबुक वाल से साभार उन्होंने इसे आज ही 19 दिसंबर 2019 को 3:18 पर पोस्ट किया 
'एनआरसी हमारी बहुत बड़ी गलती है'
गुवाहाटी से दीपक असीम, संजय वर्मा
जिस आदमी ने अपनी सारी जवानी घुसपैठियों को निकालने में लगा दी
जिस आदमी ने अपनी सारी जवानी आसाम से घुसपैठियों को निकालने की मुहिम में लगा दी हो और अंत में वही निराश होकर कहे कि हमने एक पागलपन में जिंदगी बर्बाद कर दी तो इसे आप क्या कहेंगे? यह आदमी हैं मृणाल तालुकदार, जो आसाम के जाने-माने पत्रकार हैं और एनआरसी पर इनकी लिखी किताब 'पोस्ट कोलोनियल आसाम का विमोचन' चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने हफ्ता भर पहले दिल्ली में किया है।इनकी दूसरी किताब,जिसका नाम है - 'एनआरसी का खेल' कुछ दिनों बाद आने वाली है।वह एनआरसी मामले में केंद्र सरकार को सलाह देने वाली कमेटी में भी नामित हैं।वे आल असम स्टूडेंट यूनियन (आसु) से जुड़े रहे। दस्तक के लिए उनसे लंबी और बहुत खुली चर्चा हुई।
उन्होंने कहा मेरी और मेरे जैसे हजारों लोगों की जवानी आसाम से घुसपैठियों को निकालने कि आंदोलन की भेंट चढ़ गई।हममें जोश था मगर होश नहीं था।पता नहीं था कि हम जिनको आसाम से बाहर निकालने के लिए आंदोलन कर रहे हैं उन्हें किस तरह पहचाना जाएगा और उन्हें बाहर करने की प्रक्रिया क्या होगी।1979 में हमारा आंदोलन शुरू हुआ और 1985 में हम ही आसाम की सरकार थे।प्रफुल्ल महंत हॉस्टल में रहते थे हॉस्टल से सीधे सीएम हाउस में रहने पहुंचे। 5 साल कैसे गुजर गए हमें पता ही नहीं चला।राजीव गांधी ने सही किया कि हमें चुनाव लड़ा कर सत्ता दिलवाई।सत्ता पाकर हमें एहसास हुआ कि सरकार के काम और मजबूरियां क्या होती हैं। अगला चुनाव हम हारे मगर 5 साल बाद फिर सत्ता में आए। इन दूसरे 5 सालों में भी हमें समझ नहीं आया कि बांग्लादेशियों को पहचानने की प्रक्रिया हो। लोग हमसे और हम अपने आप से निराश थे।मगर घुसपैठियों के खिलाफ हमारी मुहिम जारी थी। बहुत बाद में हमें इसकी प्रक्रिया सुझाई भारत के होम सेक्रेटरी रहे गोपाल कृष्ण पिल्लई ने।उन्होंने हमें समझाया कि आप सब की नागरिकता चेक कराओ। अपने आप की भी नागरिकता चेक कराओ और जो रह जाएं वह बाहरी।
मृणाल तालुकदार 
चोर को पकड़ने के लिए क्लास रूम में सभी की तलाशी लेने वाला यह आइडिया हमें खूब जँचा मगर तब नहीं मालूम था कि सवा तीन करोड़ लोग जब कागजों के लिए परेशान इधर-उधर भागेंगे तब क्या होगा? बाद में रंजन गोगोई ने कानूनी मदद की और खुद इसमें रुचि ली। इसमें आसाम के एक शख्स प्रदीप भुइँया की खास भूमिका रही। वे स्कूल के प्रिंसिपल हैं उन्होंने ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की और अपनी जेब से 60 लाख खर्च किए।बाद में उन्हीं की याचिका पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट एनआरसी के आदेश दिए एक और शख्स अभिजीत शर्मा ने भी एनआरसी के ड्राफ्ट को जारी कराने के लिए खूब भागदौड़ की।तो इस तरह एनआरसी वजूद में आया और वजूद में आते ही हम सब सोचने लगे कि यह हमने क्या कर डाला?
खुद हमारे घर के लोगों के नाम गलत हो गए।सोचिए कैसी बात है कि जो लोग घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए आंदोलन कर रहे हैं उन्हीं के घर वालों के नाम एनआरसी की लिस्ट में नहीं आएं? बहरहाल यह गलतियां बाद में दूर हुईं।
जानेमाने गांधीवादी समाजसेवी हिमांशु कुमार 
बयालीस हज़ार कर्मचारी 4 साल तक करोड़ों कागजों को जमा करते रहे और उनका वेरिफिकेशन चलता रहा।आसाम जैसे पागल हो गया था।एक एक कागज की पुष्टि के लिए दूसरे राज्य तक दौड़ लगानी पड़ती थी। जैसे किसी के दादा 1971 के पहले राजस्थान के किसी स्कूल में पढ़े तो उसे दादा का स्कूल सर्टिफिकेट लेने के लिए कई बार राजस्थान जाना पड़ा।लोगों ने लाखों रुपया खर्च किया। सैकड़ों लोगों ने दबाव में आत्महत्या कर ली।कितने ही लाइनों में लगकर मर ।कितनों को ही इस दबाव में अटैक आया दूसरी बीमारियां हुई। मैं कह नहीं सकता कि हमने अपने लोगों को कितनी तकलीफ दी। और फिर अंत में हासिल क्या हुआ? पहले चालीस लोग एनआरसी में नहीं आए। अब19 लाख लोग नहीं आ रहे हैं। चलिए मैं कहता हूं अंत में पांच लाख या तीन लाख लोग जाएंगे तो हम उनका क्या करेंगे? हमने यह सब पहले से नहीं सोचा था। हमें नहीं पता था कि यह समस्या इतनी ज्यादा मानवीय पहलुओं से जुड़ी हुई है। मुझे लगता है की हम इतने लोगों को ना वापस बांग्लादेश भेज सकेंगे न जेल में रख सकेंगे और ना ही इतने लोगों को ब्रह्मपुत्र में फेंका जा सकता है। तो अंत में यह निर्णय निकलेगा की वर्क परमिट दिया जाए और एनआरसी से पीछा छुड़ा लिया जाए। केंद्र सरकार दूसरे राज्यों में एनआरसी लाने की बात कर रही है लेकिन उसे आसाम का अनुभव हो चुका है।

Monday 2 September 2019

आज के दौर में माल रोड से गुज़रते हुुुए...

जनता का दुख भूल चुके हैं, अपना रौब जमाते हैं।
पत्रकार भी देखो अब अपनी तस्वीर छपाते हैं।

जैसा इनके आका बोलें, वैसा पोज़ बनाते हैं।
कठपुतली की तरह वो इनसे नाच रोज़ नचवाते हैं।

कहते हैं बस एक ही भाषा, उसका दिवस मनाएंगे हम,
फिर भाषा के नाम पे देखो, ये नफरत फैलाते हैं।

इन चिंगारियों से ही था पंजाब जला यह भूल गए,
न जाने फिर उसी तरह की आग यह क्यों भड़काते हैं।

जब हिंदी पर पुती थी कालिख, तब न जाने कहां थे ये?
अब हिंदी के नाम पे देखो अपने नोट भुनाते हैं।

पत्रकारों पर भी देखो नेतागिरी का भूत चढ़ा,
बड़ी बड़ी तसवीरें अपनी, बैनर पर लगवाते हैं।

धर्म कलम का याद नही, बस मेकअप करते रहते हैं,
तरह तरह के पोज़ बना कर मॉडल से इतराते हैं।

गोद में बैठें, दौड़ लगी है, गोदी मीडिया का यह युग,
मैं भी चमचा, में भी चमचा, ज़ोर से यह चिल्लाते हैं।

पत्रकार का दायरा कितना बड़ा है, इनको पता नहीं,
अपने हाथों कूंए बना कर उनमें गिरते जाते हैं।

हर भाषा सम्मानजनक है, आओ यह संकल्प करें,
भाषा के जो नाम पर झगड़ें, वे सब मिटते जाते हैं।

संकट बहुत गंभीर खड़े हैं, आओ उनकी बात करें,
वो दुश्मन हैं जो संकट की बात भुलाते जाते हैं।

                          --रेक्टर कथूरिया,
                               लुधियाना

Thursday 18 April 2019

आरएसएस का असली सच:

"आपका ध्‍यान किधर है? असली टुकड़े-टुकड़े गैंग इधर है"
 Abhishek Srivastava  Posted on April 15, 2019:लोकवाणी 
मुझे नहीं पता कि किसकी सबसे ज्‍यादा सीटें आएंगी। मैं नहीं जानता कौन सी पार्टी सरकार बनाएगी। मुझे ये भी नहीं पता कि मेरी लोकसभा में सीट कौन निकाल रहा है। इस चुनाव का मुझे ‘च’ भी नहीं समझ आ रहा क्‍योंकि लोग ‘’च्‍च्‍च्‍च’’ तक नहीं कर रहे। भयंकर सन्‍नाटा है टीवी और मोबाइल के बाहर की दुनिया में। मेरे पास किसी सवाल का जवाब नहीं है। केवल एक बात मैं तयशुदा तौर पर महसूस कर रहा हूं और काफी ठोकने बजाने के बाद अब कहने की स्थिति में हूं। इसे सनद रख लें। बाद में काम आएगी।
यह चुनाव न भाजपा के लिए निर्णायक है, न कांग्रेस के लिए और न ही किसी दूसरे दल के लिए। यह चुनाव जनता के लिए भी निर्णायक नहीं है, न ही देश के लिए। यह चुनाव केवल और केवल राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के लिए निर्णायक है। जीत किसी की भी हो, यह चुनाव ‘’सांस्‍कृतिक संगठन’’ आरएसएस के ताबूत में आखिरी कील साबित होने जा रहा है। जिसे पैराडाइम शिफ्ट कहते हैं, उसका गवाह बन रहा है ये चुनाव। मुहावरा पलट गया है- कभी कहते थे कि बिना संघ के भाजपा कुछ नहीं है, आज की हकीकत ये है कि भाजपा है तो संघ है। संघ ने पूरी तरह भारतीय जनता पार्टी के धनबल और नेतृत्‍व-प्रभाव के सामने आत्‍मसमर्पण कर दिया है। ऐसा अनजाने नहीं हुआ, संघ के शीर्ष स्‍तर पर स्‍वेच्‍छा से लिया गया सचेतन निर्णय है।
भाजपा ने अपना खज़ाना खोल दिया है। संघ के काडरों का मुंह खुला हुआ है। साइकिल से चलने वाला प्रचारक फॉर्चूनर पर आ गया है। सांसद प्रत्‍याशी के इर्द-गिर्द घूम रहा है। सुविधाभोगी हो गया है। झण्‍डेवालान परिसर में जाकर देखिए समझ आ जाएगा, संघ के मुंह में पैसे का खून लग चुका है। अब वह परदे के पीछे काम करने वाला सांस्‍कृतिक संगठन नहीं रह गया है। आज का प्रचारक सामने खुलकर, आरएसएस लिखी टीशर्ट पहनकर, देसी चेग्‍वारा बना फिर रहा है। उसे समझ में आ चुका है कि बिना उत्‍पादन किए जिंदगी कैसे हरामखोरी से काटी जाती है। अब यह सिलसिला रुकने वाला नहीं। यह संघ को ले डूबेगा।
आप अपने क्षेत्र की शाखाओं और प्रचारकों के साथ एकाध भाजपा उम्‍मीदवारों के प्रचार में टहल आइए, आपका नतीजा इससे उलट नहीं होगा। 2014 के बाद सत्‍ता की राजनीति और मातृ संगठन की विचारधारा के बीच जो टकराव शुरू हुआ था, वह अब मुकम्‍मल हो चुका है। अब संघ का काडर पेड प्रचारक है। इसका असली परिणाम देखना हो तो 2022 तक दम थामे रखिए। अब तक भाजपा वाले कांग्रेस में जाते दिखे हैं, कल संघ का प्रचारक वहां जाएगा जहां उसकी सही कीमत लगेगी। एबसर्ड के थिएटर में केवल एक विचारधारा खतरे में नहीं होती, सभी होती हैं। सामाजिक निष्‍ठा का लोप सारे वैचारिक संगठनों को ले डूबता है। संघ अपवाद नहीं होना चाहिए।
सवाल उठता है कि फिर हिंदू राष्‍ट्र बनाएगा कौन? मेरे खयाल से कोई नहीं। जिस तरह सीपीआई, सीपीएम, माले सर्वहारा की तानाशाही स्‍थापित नहीं कर सकते ठीक उसी तरह भाजपा हिंदू राष्‍ट्र नहीं बना सकती। फिर सवाल उठता है भाजपा क्‍या बनाएगी? याद रहे, भाजपा का जन्‍म तोड़ने से हुआ है। उसकी पैदाइश में ही विध्‍वंस है। उसे कुछ भी बनाना नहीं आता। बनाने का आर्गुमेंट ही उसे नहीं आता है। इसलिए विकृत और पथच्‍युत संघ वाली भाजपा केवल तोड़ेगी। जितना तोड़ा है, उससे ज्‍यादा और तेजी से तोड़ेगी। आपका ध्‍यान किधर है? असली टुकड़े-टुकड़े गैंग इधर है।
आरएसएस पर एक दूसरा नज़रिया यह भी
लेकिन अभिषेक श्रीवास्तव के इस विश्लेषण से विनय सुल्तान सहमत नहीं दीखते। सुल्तान लिखते हैं, संघ यह समझता है कि ‘हिन्दू’ राजनीतिक पहचान के तौर पर जितना मजबूत होगा, उसकी जड़े उतनी ही गहरी होंगी।
पिछले पांच साल में संघ ने अपने काम करने के तरीके को बदला है। 
पहले होता यह था कि आप शाखा जाते थे। संघ शिक्षा वर्ग में शामिल होते थे। फिर आपको अनुषांगिक संगठनों की जिम्मेदारी दे दी जाती थी। अब ऐसा नहीं है। अब चाहे आप शाखा जाते हो या नहीं, आपने संघ शिक्षा वर्ग किया है या नहीं आपको अनुषांगिक संगठनों की जिम्मेदारी मिल रही है।
एक मोहल्ले में संघ ने 14 अलग-अलग संगठन खड़े किए हैं। इसमें गौ रक्षा, लव जिहाद नियंत्रण जैसे संगठन हैं। ये आपको जमीन पर बहुत सक्रिय नहीं दिखाई देते। संघ की शाखाओं में भी संख्या घट रही है। लेकिन लोगों के बीच संघ की घुसपैठ बढ़ी है। यह काम बहुत सधे हुए ढंग से चल रहा है।
दूसरा ऑनलाइन माध्यमों की वजह से प्रचार का व्याकरण भी बदला है। यह पहले से ज्यादा टार्गेटेड है। सटीक है। हम और आप इसके लक्षित समूह नहीं है, इस वजह से इसके फैलाव से भी बेखबर हैं। हिंदुत्व का जो मास हिस्टीरिया 2014 में खड़ा होना शुरू हुआ था वो अब मोदी के नियंत्रण से बाहर है। संघ जब चाहे तब मोदी को हिन्दू विरोधी साबित करके किनारे लगा सकता है। 2004 में अटल के साथ वो यह कर चुका है। उस समय संघ की प्रचार मशीन ने अंदर ही अंदर अटल को गाय की जीभ खाने वाला साबित कर दिया था।
संघ अब भी सत्ता का केंद्र है। जिस दिन नरेंद्र मोदी की उपयोगिता खत्म होगी, मार्गदर्शक मंडल में उनके लिए सीट खाली कर दी जाएगी। (लोकवाणी से साभार)