Monday 2 September 2019

आज के दौर में माल रोड से गुज़रते हुुुए...

जनता का दुख भूल चुके हैं, अपना रौब जमाते हैं।
पत्रकार भी देखो अब अपनी तस्वीर छपाते हैं।

जैसा इनके आका बोलें, वैसा पोज़ बनाते हैं।
कठपुतली की तरह वो इनसे नाच रोज़ नचवाते हैं।

कहते हैं बस एक ही भाषा, उसका दिवस मनाएंगे हम,
फिर भाषा के नाम पे देखो, ये नफरत फैलाते हैं।

इन चिंगारियों से ही था पंजाब जला यह भूल गए,
न जाने फिर उसी तरह की आग यह क्यों भड़काते हैं।

जब हिंदी पर पुती थी कालिख, तब न जाने कहां थे ये?
अब हिंदी के नाम पे देखो अपने नोट भुनाते हैं।

पत्रकारों पर भी देखो नेतागिरी का भूत चढ़ा,
बड़ी बड़ी तसवीरें अपनी, बैनर पर लगवाते हैं।

धर्म कलम का याद नही, बस मेकअप करते रहते हैं,
तरह तरह के पोज़ बना कर मॉडल से इतराते हैं।

गोद में बैठें, दौड़ लगी है, गोदी मीडिया का यह युग,
मैं भी चमचा, में भी चमचा, ज़ोर से यह चिल्लाते हैं।

पत्रकार का दायरा कितना बड़ा है, इनको पता नहीं,
अपने हाथों कूंए बना कर उनमें गिरते जाते हैं।

हर भाषा सम्मानजनक है, आओ यह संकल्प करें,
भाषा के जो नाम पर झगड़ें, वे सब मिटते जाते हैं।

संकट बहुत गंभीर खड़े हैं, आओ उनकी बात करें,
वो दुश्मन हैं जो संकट की बात भुलाते जाते हैं।

                          --रेक्टर कथूरिया,
                               लुधियाना

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