जन आवाज़ को मज़बूते करते हुए मंजुल भारद्वाज
मोहाली: 9 अक्टूबर 2023: (रेक्टर कथूरिया// जन मीडिया मंच डेस्क)::
मुंबई से लेकर देश और दुनिया के सभी कोनों तक जागरूकता की छह रखने वाले मंजुल भारद्वाज निरंतर सक्रिय हैं। अपने जागरूक साहित्यकार कर रंगमंच को समर्पित शख्सियत मंजुल भारद्वाज जन कलाकारों और जन कलमकारों से जुड़े हुए हैं। पूरा परिवार ही जन आवाज़ को समर्पित है। मुंबई जैसे महानगर में रह कर जनता की आवाज़ बने रहना आसान नहीं होता। घर परिवार की ज़िम्मेदारियों के साथ साथ अपनी टीम के सदस्यों का भी ध्यान रखना काफी कठिन होता है। रंगमंच, कविता, राजनीति, सोशल मीडिया, या कोई भी क्षेत्र या मंच हो मंजुल भारद्वाज अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण से कभी पीछे नहीं हटे। वह अपनी विचारधारा के साथ हमेशां बने रहते हैं। उनकी यह कविता भी इसी सत्य को बता रही है। वैसे आप लकीर के किस तरफ हैं--इस रचना को पढ़ कर खुद ही अपने आप से पूछिए। -रेक्टर कथूरिया
पहले से खींची हुई लकीर को
मिटाकर नहीं
उससे बड़ी लकीर खींचकर
इतिहास रचो !
उपरोक्त कथन
एकाकीपन का
अनंत गंतव्य पथ है
जहाँ गंतव्य अंतहीन है !
सृजनकार के लिए
समीक्षा,आलोचना
आत्मसंवाद अनिवार्य
सृजन आयाम हैं
पर समीक्षक, आलोचक की योग्यता का
कोई पैमाना निश्चित होता है?
जैसे पापी को सज़ा देने के लिए
पत्थर वही मारे
जिसने पाप ना किया हो !
जो नाटक लिखते हों
नाटक में अभिनय
निर्देशन किया हो
सरकारी खैरात
बनिया,कॉर्पोरेट
या किसी पार्टी का पालतू पट्टा
बांधे बिना
दर्शक सहभागिता से
रंग सृजन कर
धर्मान्धता,पूंजीवाद
वर्णवाद,सामन्तवाद, पितृसत्तात्मक
फ़ासीवादी तानाशाही का मुखर
प्रतिरोध करते हुए
समता,न्याय,शांति
अहिंसा,सत्य और मानवीय मूल्यों के लिए
समर्पित हो
रंगकर्म पर ज़िंदा हो !
प्रतीक्षारत हूँ
ऐसे सृजनकार
समीक्षक, आलोचक की
जिससे रंग चिंतन पर
विमर्श कर सकूं ...
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