कार्पोरेटी दबदबे के बावजूद हो रहा है बैंक सम्मेलन
पत्रकार सम्मेलन में बताया गया बैंक सम्मेलन का पूरा विवरण
लुधियाना:
3 सितंबर 2022: (एम एस भाटिया//
इनपुट-कार्तिका सिंह//और जन मीडिया मंच डेस्क)::
धन की गंगा कहां से आ कर कहां चली जाती है? यह सवाल दिन प्रति दिन गंभीर होता चला जा रहा है? पैसा आम आदमी की जेब से क्यूं उड़ कर निकल जाता है और क्यों बड़े धन्ना सेठों की तिजौरी में पहुंच जाता है? क्यों उनकी अमीरी दुनिया भर में बताने लायक हो जाती है और क्यूं किसी आम आदमी को अपनी ख़ुदकुशी की बेबसी भी छुपानी पड़ती है। एक तरफ है कॉर्पोरेटी अटटहास--एक राक्षसी हंसी अंदाज़ और दूसरी तरफ हैं गरीबी के आंसू? इस असुरी हंसी और आंसुओं के दरम्यान टकराव के आसार बढ़ते ही जा रहे हैं।
रविवार और सोमवार अर्थात चार और पांच सितंबर को लुधियाना में हो रहा बैंक मुलाज़िमों का सम्मेलन इस तरह के कई सवालों को ले कर गंभीर है। जिस महान देश की संस्कृति में खाना खाते वक्त अकेले हो कर खाना भी अकेले नहीं खाया जाता। पड़ोसी की रसोई ध्यान रखा जाता है कि वहां भी भोजन बना था या नहीं? जिस देश में खाना खाते वक्त कुत्ते के हिस्से का निवाला निकाला जाता है, गाय के लिए रोटी निकाली जाती है, पक्षियों के लिए दाना निकाला जाता है वहां अब जनता के सभी निवाले कॉर्पोरेटी दानव निगलता जा रहा है।
बहुत जल्द आने वाले हैं वे दिन जब कोई भूख का सताया राहगीर गन्ने के खेत से एक गन्ना भी नहीं तोड़ सकेगा। एक छल्ली भी नहीं तोड़ सकेगा। एक मूली या एक गाजर भी नहीं तोड़ सकेगा। ये सब बातें अतीत की बातें होने वाली हैं। अगर हम नहीं चेते तो हर सांस पर पहरा लगने वाली स्थिति बन रही है।
दूसरी तरफ कॉर्पोरेटी अमीरी पूरी तेज़ी से बढ़ रही है। दुनिया के तीसरे या चौथे सबसे अमीर और अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी ने अब देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई (State Bank of India) से 14,000 करोड़ रुपये का लोन मांगा है। कितना आसान धंधा हो गया है इन लोगों के लिए। लोन लो अमीर बनो, कम्पनी खड़ी करो और जाओ।
बैंक सम्मेलन में आए लोग बहुत सी बातें बताते हैं जो अनहोनी जैसी लगती हैं लेकिन सच निकलती हैं। अब अडानी ग्रुप की गुजरात के मुंद्रा में पीवीसी प्लांट (PVC Plant) लगाने की योजना है। अब अडानी की परियोजना है तो ज़ाहिर है बड़ी ही होगी। इसके लिए पैसा भी बहुत चाहिए होगा। जुट भी जाएगा फिर भी सवाल तो है ही कि आखिर कहां आएगा? इसी प्रोजेक्ट की फाइनैसिंग करने के लिए अडानी समूह ने एसबीआई से लोन की मांग की है। उम्मीद है जल्द ही यह सब सिरे भी चढ़ जाएगा। कौन रोकेगा इतने बड़े घराने को? फिर कुछ नई कम्पनियां खड़ी हो जाएंगी तेज़ी से कुछ और पायदान ऊपर चढ़ते हुए अडानी साहिब जल्द ही दुनिया के सबसे अमीर बन जाएंगे। गरीब देश के अमीर लोगों की संख्या भी तो बढ़ती जा रही है। वह देश जहां लोग गरीबी, क़र्ज़ और भूख के कारण प्राकृतिक मौत मर जाते हैं या ख़ुदकुशी कर लेते हैं।
बैंकों से जुड़े लोग मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले देते हुए बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट में शुरुआती निवेश के लिए 19,000 करोड़ रुपये की सख्त ज़रूरत है। किसी भी तरह की कोई कमी न रहे इस लिए अडानी समूह प्रोजेक्ट के लिए कर्ज और इक्विटी के जरिए पैसा जुटाने की योजना बना रही है। पैसा आ भी जाना ही है। अडानी समूह की होल्डिंग कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज (Adani Enterprises) के जरिए प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जा रहा है। इससे पहले भी मार्च में अडानी एंटरप्राइजेज की कंपनी नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट ने बैंकों से 12,770 करोड़ रुपये जुटाए थे। रकम तो यह भी बहुत बड़ी थी। हाल ही में कंपनी ने मुंद्रा में अपने ग्रीनफील्ड कॉपर रिफाइनरी प्रोजेक्ट के लिए 6,071 करोड़ रुपये जुटाए हैं। पीवीसी प्रोजेक्ट के लिए लोन पर अभी एसबीआई से बातचीत चल रही है। कितना दिमाग पाया है इन लोगों ने?कितनी इन लोगों को? किस तरह चुंबक की तरह पैसे को खींच लेते हैं। लोगों की जेब से भी और बैंकों से भी। शायद लक्ष्मी किसी बैंकुंठ में नहीं बल्कि इन्हीं के महलों में ही रहती है।
यह सब भी उस हालत में जब कि इन लोगों पर पहले से ही बहुत से बकाए हैं। अडानी ग्रुप पर बैंकों का बड़ा कर्ज़ बकाया है। वित्त वर्ष 2021-22 में अडानी समूह पर कर्ज बढ़ गया है और 40.5 फीसदी बढ़कर 2.21 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। जबकि पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में यह 1.57 लाख करोड़ रुपये था। वित्तीय वर्ष 2021-22 में अडानी एंटरप्राइजेज का कर्ज और बढ़ा है। कंपनी का कर्ज बढ़कर 41,024 करोड़ रुपये पर जा पहुंचा है। किसी गरीब इंसान को कोई एक किलो आता उधर देने से मना कर देता है और इन लोगों को देखो कितनी बड़ी रकमें उधर में मिल जाती हैं। उधार भी ऐसा जिसे चुकाने की मजबूरी भी इनकी राह में नही आती।
इसी बीच कामरेड स्क्रीन के मुताबिक आम इंसान सिर्फ दुखी है कि आखिर मेहनत करके भी उसका गुज़ारा क्यों नहीं होता। उसकी कमाई उसकी जेब में आने की बजाए किसकी जेब में चली जाती है। वह कभी कभी सवाल भी करता है कि बैंकों से कर्ज़े ले कर अंगूठा दिखा देने वाले लोग दुनिया के सबसे बड़े अमीरों की सूची में कैसे आ जाते हैं। क्या कभी वह या उसकी औलाद अमीर बन भी पाएगी? इस तरह के बहुत से सव्वल आम जनता के मन में हैं लेकिन जवाब कोई नहीं देता। आज लुधियाना में बैंक वालों की प्रेस कांफ्रेंस थी। उनका दो दिवसीय सम्मेलन कल रविवार से लुधियाना के गुरु नानक भवन में शुरू हो रहा है। इसमें पहुंच रहे वक्ता प्रवक्ता उन सभी बारीकियों को बताएंगे कि आम इंसान गरीब कैसे होता जा रहा है और सत्ता रहने वाले बड़े बड़े लोग दुनिया में बड़े अमीर कैसे होते जा रहे हैं। आज के पत्रकार सम्मेलन में आल इंडिया बैंक इम्प्लाईज़ एसोसिएशन के महासचिव सी एच वेंकटचलन, सचिव बी इस राम बाबू और एक अन्य सचिव संजय कुमार भी मौजूद रहे।
4 और 5 सितंबर 2022 को लुधियाना में आल इँडिया सेंट्रल बैंक इम्प्लाइज फैडरेशन और ऑल इँडिया सेंट्रल बैंकऑफिसर्स एसोसिएशन के संयुक्त सम्मेलन के अवसर पर खोले जाएंगे ऐसे रहस्य जो आपको हैरान कर देंगें। इन लोगों ने अपनी स्वतंत्रता से ही शुरू की। हम स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ की जय करते हैं: हम अपने बुजुर्गों द्वारा ब्रिटिश साम्राज्यवाद के हाथों से लड़ने और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए किए गए बलिदानों को तहे दिल से याद करते हैं। भारत ने पिछले 75 वर्षों में बहुत प्रगति की है और हमें उस पर गर्व भी है लेकिन साथ ही पूरी बेबाकी से बताया कि आज भी हमारा देश धन के असमान वितरण है।
आज भी कुछ धनी लोगों के हाथों में बढ़ती जा रही है धन की एकाग्रता। आज भी हमारे लोगों की एक बड़ी संख्या की गरीबी जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। जब हम इस खुशी के अवसर पर सभी को बधाई देते हैं, तो हम सभी के लिए एक बेहतर और समान समाज के लिए लड़ने का संकल्प भी लेते हैं।
बैंकों का निजीकरण न करें: 1969 में, भारत में प्रमुख निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। पिछले 53 वर्षों में, इन राष्ट्रीयकृत बैंकों ने हमारे देश के आर्थिक विकास में बहुत योगदान दिया है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों की सेवा के लिए हजारों शाखाएं खोली गई हैं। कृषि, लघु और मध्यम उद्योग, शिक्षा, प्रमुख उद्योग, ग्रामीण विकास, बुनियादी ढांचा क्षेत्र आदि को बड़े पैमाने पर ऋण दिया जा रहा है। इन बैंकों द्वारा जनता की बचत को उनकी बचत के लिए सुरक्षा प्रदान करने के लिए जुटाया गया है।
राष्ट्रीयकरण से पहले और 1969 के बाद भी निजी बैंकिंग की स्थिति बिगड़ती चली जा रही है। कई निजी बैंक कुप्रबंधन के कारण ध्वस्त हो गए हैं और लोगों की बचत खो गई है। राष्ट्रीयकृत बैंक लोगों की बचत की रक्षा कर रहे हैं। राष्ट्रीयकृत बैंक ही प्राथमिकता क्षेत्र को ऋण दे रहे हैं।
आज बैंकों की कुल जमाराशियां : रु. 170 लाख करोड़ दिया गया कुल ऋण : रु. 120 लाख करोड़
लोगों की सेवा के लिए इन राष्ट्रीयकृत बैंकों को और मजबूत करना होगा। लेकिन सरकार ने घोषणा की है कि राष्ट्रीयकृत बैंकों का निजीकरण किया जाएगा। यदि बैंकों का निजीकरण किया जाता है, तो ग्रामीण बैंकिंग प्रभावित होगी। निजी बैंक ग्रामीण बैंकिंग को बढ़ावा नहीं देंगे। वे अधिक लाभ में ही रुचि लेंगे। धीरे-धीरे केवल अमीर लोगों को ही खाते रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसलिए एआईबीईए बैंकों के निजीकरण के फैसले का विरोध कर रहा है।
हम अपनी मांग का समर्थन करने के लिए लोगों को शिक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान चला रहे हैं। हम प्रधानमंत्री को एक सामूहिक याचिका दायर करने के लिए लोगों से हस्ताक्षर एकत्र कर रहे हैं।
एआई.बी.ई.ए ने बड़ी कंपनियों से खराब ऋण की वसूली की मांग की: आज बैंकों में एकमात्र बड़ी समस्या बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा डिफ़ॉल्ट रूप से बढ़ते खराब ऋण हैं। हम उनके खिलाफ कर्ज की वसूली के लिए कार्रवाई की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार उन्हें अधिक से अधिक रियायतें दे रही है।
पिछले 6 वर्षों से, खराब ऋण खातों को दिवाला और दिवालियापन संहिता IBC के तहत न्यायाधिकरणों को संदर्भित किया जाता है।कर्ज वसूली की जगह ये कर्ज कुछ अन्य कंपनियों को सस्ते दर पर बेचे जा रहे हैं जैसे दूकान की वस्तु बिका करती है इस सब कुछ से और बैंकों को भारी नुकसान हुआ है।
आईबीसी जनता का पैसा लूटने का एक तरीका बन गया है क्योंकि बैंकों को इन सौदों में बड़े पैमाने पर (हेयर कट) घोर घाटे पड़ते हैं और बलिदान देना पड़ता है। चूककर्ता बिना किसी दंडात्मक कार्रवाई के भाग जाते हैं। एक अन्य कॉर्पोरेट कंपनी सस्ते दरों पर इन ऋणों को ले रही है।
एनपीए-आईबीसी (हेयर कट) घाटे पढने की कहानी
करोड़ों रु में
बैंकों के लिए ऋण राशि ऋण राशि का निपटान और समाधान % के पक्ष में
एस्सार 54,000 42,000 23% आर्सेलर मित्तल
भूषण स्टील्स 57,000 35,000 38 टाटा
ज्योति संरचनाएं 8,000 3,600 55 शरद संघ
डीएचएफएल 91,000 37,000 60 पीरामल
भूषण पावर 48,000 19,000 60 जेएसडब्ल्यू
इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स 14,000 5,000 62 वेदांत
मोनेट इस्पात 11,500 2,800 75 जेएसडब्ल्यू
एमटेक 13,500 2,700 80 डीवीआईएल
आलोक इंडस्ट्रीज 30,000 5,000 83 रिलायंस + जेएम फिन
लैंको इंफ्रा 47,000 5,300 88 कल्याण समूह
वीडियोकॉन 46,000 2,900 94 वेदांत
एबीसी शिपयार्ड 22,000 1,200 95 परिसमापन
शिवशंकरनीउद्योग 4,800 320 95% ससुर
लाभ कहाँ जाता है: मार्च, 2022 तक - सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक
कुल सकल परिचालन लाभ: 208,654 करोड़
खराब ऋण आदि के लिए प्रावधान: 1,41,918 करोड़
प्रावधानों के बाद शुद्ध लाभ: 66,736 करोड़
इस प्रकार, बैंकों द्वारा अर्जित अधिकांश लाभ (लाभ का 68%) खराब ऋणों के प्रावधान और खराब ऋणों को बट्टे खाते में डालने के लिए चला जाता है। इस प्रकार कॉरपोरेट्स द्वारा लोगों का पैसा लूटा जा रहा है।
शाखाओं का बंद होना: जब सरकार समावेशी विकास और सभी लोगों की सेवा लेने की बात करती है, तो वास्तव में शाखाओं की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है। हम मांग करते हैं कि अधिक से अधिक नई शाखाएं खोली जानी चाहिए, विशेष रूप से गैर-बैंकिंग क्षेत्रों में।
हम बैंकों के निजीकरण पर पनागरिया रिपोर्ट का विरोध करते हैं:
13-7-2022 को, श्री अरविंद पनागरिया, पूर्व नीति आयोग और नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के पूनम गुप्ता ने सभी बैंकों के निजीकरण का सुझाव देते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है क्योंकि निजी बैंक अधिक कुशल हैं। यह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के खिलाफ प्रतिशोधात्मक और प्रतिशोधात्मक रिपोर्ट है।
वे पूरी तरह से भूल गए हैं कि हमारे देश में दक्षता और सरकार के कारण इतने सारे निजी बैंक ध्वस्त हो गए हैं। बैंकों को विलय करना पड़ा और उन्हें बचाना पड़ा।
वे भूल गए हैं कि 90% बैड लोन बड़ी निजी कॉरपोरेट कंपनियों के कारण हैं।
वे भूल गए हैं कि जन धन योजना के 98% खाते सरकार । बैंक द्वारा खोले गए हैं और निजी बैंकों द्वारा नहीं।
वे भूल गए हैं कि कृषि, रोजगार सृजन, गरीबी में कमी, ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण आदि के लिए ऋण केवल सरकार बैंक द्वारा दिया जाता है। और निजी बैंक नहीं।
वे भूल गए हैं कि केवल पीएसबी ने दूरस्थ ग्रामीण गांवों में शाखाएं खोली हैं, निजी बैंकों ने नहीं।
आज भी प्राइवेट बैंकों में बहुत सारी छिपी हुई गड़बड़ियां हैं। निजी बैंकों का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा है।
हम इस रिपोर्ट को खारिज करने की मांग करते हैं। सी.एच. वेंकटचलम, महासचिव ने बहुत ही सादगी से लेकिन स्पष्ट हो कर कहा। अब देखना है कि आम जनता कब इन बैंक वालों का साथ देगी और कैसे देगी?
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